Gautam Gambhir Retired News: गौतम गंभीर ने लिया राजनीति से सन्यास हाल ही मे ही उन्होने ये जानकारी Social Media के जरिये सामने रखी है| पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली से भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने राजनीति से संन्यास लेने का एलान किया है। यानी कि वो अब इस बार का होने वाला लोकसभा चुनाव वो नही लड़ेंगे |
फोटो – जेपी ननड्डा के साथ गौतम गंभीर
जानिए गौतम गंभीर न्यूज़ को विस्तार से :
पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली के बीजेपी सांसद गौतम गंभीर ने सनिवार को अपने social मीडिया हंडेल एक्स अकाउंट से ट्वीट कर राजनीति से सन्यास लेने का एलान किया हे, उन्होने खा है की ‘ मेने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से अनुरोध किया हे की वो मुझे मेरे राजनीतिक कर्तव्यो से मुक्त कर दे, जिससे मे क्रिकेट पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकू|’
गौतम गंभीर ने बोला कि मुझे लोगो कि सेवा करने का मोका देने के लिए में माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया |
Gautam Gambhir के Retired होने पर कांग्रेस नेताओ कि प्रतिक्रिया :
लोकसभा सांसद गौतम गंभीर द्वारा राजनीतिक कर्तव्यों से मुक्त करने का अनुरोध करने पर कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि गंभीर एक अच्छे और विनम्र व्यक्ति हैं। सभी लोग उनके द्वारा किये गए काम के लिए सराहना करते है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि NDA सरकार में उनके सांसदों को काम करने की इजाजत नहीं है।
टिकिट कटने का था डर :
लोकसभा प्रत्याशियों के नाम तय करने के लिए केंद्रीय चुनाव समिति की पहली बैठक होने के बाद प्रत्याशियों के नाम को लेकर दिन भर कयास लगते रहे। प्रदेश भाजपा कार्यालय से लेकर अन्य स्थानों पर नेता और कार्यकर्ता संभावित नामों पर चर्चा करते रहे। सात में से चार सांसदों के टिकट कटने की बात कही जा रही है। इनमें एक गौतम गंभीर का भी नाम शामिल बताया जा रहा था।गौतम गंभीर के अलावा केंद्रीय राज्य मंत्री व नई दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी, पूर्व केंद्रीय मंत्री व चांदनी चौक के सांसद डॉ. हर्षवर्धन का भी टिकट कट सकता है। उत्तर पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी, पश्चिमी दिल्ली प्रवेश वर्मा और दक्षिणी दिल्ली से रमेश बिधूड़ी को तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारे जाने की संभावना है।
2019 में भाजपा से बने थे सांसद :
गौतम गंभीर ने 3 दिसंबर 2018 को क्रिकेट को अलविदा कह दिया था। इसके बाद उन्होंने उनके राजनीति का दामन थामने के कयास लगने लगे थे और वो 22 मार्च 2019 को भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी ने उनपर भरोसा जताया और उन्हें पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया था।
गौतम गंभीर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र(East Delhi Lok Sabha Seat) से भाजपा के उम्मीदवार थे। उन्होंने आप की उम्मीदवार आतिशी मर्लेना और कांग्रेस उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली को हराया था |
What Is Leap Year? Everything You Need To know about Leap Year, Origin, History, Cultural Significance, and Many More.
Unraveling Leap Days: A Journey Through Time and Calendars:
What is Leap Day: So, you know how we’ve been adding those extra days to our calendars now and then? Well, turns out, this idea isn’t exactly new. According to our pals over at Britannica, leap days have been around for ages.
Different calendars, like the Hebrew, Chinese, and Buddhist ones, have had their versions of leap months, which are pretty cool, right? History Channel filled us in on that.
Now, let’s talk about Julius Caesar. He’s often given credit for coming up with leap days, but guess what? He took the idea from the Egyptians. National Geographic says those ancient Egyptians had this solar calendar thing going on, with a leap year every four years. Talk about being ahead of their time!
Fast forward to ancient Rome, where they had this quirky calendar with a funky name for their extra month: “Mercedonius.” It wasn’t a standalone month, though; they tacked it onto February to keep things in sync with the sun, as per the History Channel.
So, when Julius Caesar was crafting the Julian calendar, he thought, “Hey, why not add an extra day to February every four years?” And that’s how leap days became a thing. The Julian calendar kicked off on January 1, 45 BCE – a historic moment!
But, you know, nothing’s perfect. Caesar’s calculations were close but not spot-on, which meant the Julian calendar would eventually fall short by a day every 128 years or so. Whoopsie! National Geographic gave us the lowdown on that.
What Is Leap Day :
Introduction to Leap Day: A leap day occurs every four years, adding an extra day to the calendar as February 29th. This additional day helps synchronize the calendar year with the solar year, maintaining the alignment of seasons.
Origin and History:
The concept of leap years dates back to Julius Caesar’s calendar reforms in 46 BCE. The Julian calendar introduced the leap year to accommodate the slightly longer solar year. Later refinements in the Gregorian calendar further adjusted the leap year system.
Cultural Significance:
Various cultures have unique superstitions and traditions associated with leap years. Some view leap years as special, while others consider them unlucky. For instance, in Ireland, it’s a tradition for women to propose to men on leap day.
Impact on Birthdays:
Leap years affect birthdays, causing them to fall on different days of the week than usual. People born on February 29th, known as “leaplings,” celebrate their birthdays only once every four years.
Scientific Explanation:
Leap day occurs every four years due to the mismatch between the calendar year and Earth’s orbit. This discrepancy necessitates the addition of an extra day to keep the calendar in sync with the solar cycle.
Conclusion: Leap Day serves as a fascinating intersection of history, culture, and science. Its observance ensures the accuracy of our calendars and offers a glimpse into humanity’s ongoing efforts to harmonize with the rhythms of nature.
Leap Year Movie: “Leap Year: Love Across Ireland’s Landscape
Leap Year” is a romantic comedy film where Anna, played by Amy Adams, plans to propose to her boyfriend on February 29th, an Irish tradition. When her boyfriend is in Dublin, she faces travel challenges due to bad weather and enlists the help of Declan O’Callaghan, an Irish innkeeper, played by Matthew Goode. They embark on a journey across Ireland, and amidst the trials of the trip, Anna discovers her true feelings. The movie explores themes of love, fate, and self-discovery against the backdrop of Ireland’s scenic landscapes
Pankaj Udhas Passes Away : 17 मई 1951 में गुजराती फैमिली में जन्मे पंकज उधास के निधन की जानकारी बेटी नाया ने मिडिया से साझा किया # pankaj udhash death पंकज उधास चारण भारत के एक गज़ल गायक थे। भारतीय संगीत उद्योग में उनको तलत अज़ीज़ और जगजीत सिंह जैसे अन्य संगीतकारों के साथ इस शैली को लोकप्रिय संगीत के दायरे में लाने का श्रेय दिया जाता है।
जानिए क्या कारण है पंकज उधास के निधन का(Pankaj Udhash Death Reason) :
26 फरवरी 2024 को सुबह 11 बजे के आसपास लंबी बीमारी के कारण उनका निधन हो गया, और उनकी बेटी ने social media के माध्यम से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में कैंसर के कारण निधन कि दुखद खबर साझा की। मशहूर संगीतकार पंकज उधास का 72 साल की उम्र में निधन हो गया।
पंकज उधास नेट वर्थ :
पंकज कुमार अपने पीछे परिवार के लिए 25 करोड़ कि सम्पति छोड़ गये है| वे फ़िल्मी इवेंट्स में सिंगिंग और youtube के जरिये पेसे कमाते और अपनी लग्जरी लाइफ जीने के ढंग से चर्चा में रहते थे |
मुंबई में उनके पास आलिशान घर और गाड़िया है उनके घर का नाम हिलसाइड है| उनके कार कलेक्शन में ऑडी और मर्सिडीज कार भी शामिल है |
इनके पास 3 मंजिला घर है जिसका नाम हिलसाइड है जो अम्बानी के घर अन्तिलिया से मात्र कुछ मीटर कि दुरी पे है|
पदम् श्री सम्मानित है पंकज उधास :
Pankaj Udhas Death से पहले पंकज उधास संगीत कला में बहुत मशहूर थे उनके संगीत कला में योगदान के लिए 2006 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से नवाजा गया| उनकी दोनों बेटिया भी संगीत कला से जुडी हुई है और उनकी पत्नी एयर होस्टेस थी |
जानिए पंकज उधास कि पहेली कमाई :
पंकज उधास कि पहेली कमाई के बारे में जाने तो उनकी पहली कमाई भारत चीन के युद्ध के दोरान जब देश भक्ति का माहोल छाया हुआ था तब उन्होंने अपने भाई के साथ ‘ये वतन के लोगो ‘ गाना गाकर सबकों अपना फेन बना लिया, इस गाने पर उन्हें 51 रूपये का इनाम मिला था , यही उनकी पहली कमाई थी इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुडके नही देखा |
पंकज उधास के सुपरहिट गजल :
चार दशकों से अधिक समय से, पंकज उधास सबसे लोकप्रिय ग़ज़ल गायकों में से एक रहे हैं। 1980 के दशक की ग़ज़ल लहर शुरू होने पर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत करते हुए सरल और मधुर गीतों से प्रभाव डाला।
17 मई को उनका 71वां जन्मदिन मनाने के लिए, हम 1990 के दशक के अंत तक उनकी 10 हिट फ़िल्मों का चयन करते हैं। अंतिम दो लोकप्रिय फ़िल्मी गाने हैं, और अन्य उनके निजी एल्बम से हैं। यह सूची किसी विशेष क्रम में नहीं है.
संगीत समारोहों में उधास के सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक, इसकी पंक्तियाँ हैं, “चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी, बाकी सब कंगाल”। जबकि ये पंक्तियाँ कतील शिफाई द्वारा लिखी गई थीं, अन्य शेर विशेष रूप से मुमताज रशीद द्वारा गीत के लिए लिखे गए थे। इस प्रक्रिया को ‘तज़मीन’ के नाम से जाना जाता है। यह गाना पहली बार 1984 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शित किया गया था।
घुंघरू टूट गए
एक और पसंदीदा संगीत कार्यक्रम, इसे कतील शिफाई ने लिखा था। शुरुआती पंक्तियाँ थीं, “मोहे आई न जग से लाज, मैं इतना जोर से नाची आज, कि घुंघरू टूट गये”। हालांकि उधास का संस्करण बेहद लोकप्रिय है, इस गाने को 2019 की फिल्म वॉर में विशाल-शेखर द्वारा अनुकूलित करने के अलावा, अनूप जलोटा और आबिदा परवीन द्वारा भी प्रस्तुत किया गया है।
आप जिनके करीब होते हैं
यह गाना अपनी बेहद सादगी और छोटी मीटर संरचना से प्रभाव पैदा करता है। नूह नारवी के बोल शुरू होते हैं, “आप जिनके करीब होते हैं, वो बड़े खुशनसीब होते हैं”। इनमें से एक शेर है, “मुझसे मिलना फिर आप का मिलना, आप किसको नसीब होते हैं”। यह 1984 के एल्बम तरन्नुम से है।
दीवारों से मिलकर रोना
गीत उधास के गायन के साथ एक भावनात्मक राग को छूता है, “दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है, हम भी पागल हो जाएंगे, ऐसा लगता है”। गीतकार क़ैसर-उल-जाफ़री हैं। इस गाने का इस्तेमाल 1981 के एल्बम मु-कर-रार में किया गया था।
झील में चाँद
कवि मुमताज रशीद, जिनका पिछले महीने निधन हो गया था, ने यह रत्न लिखा था, वह भी एल्बम मु-कर-रार से। पंक्तियाँ हैं, “झील में चाँद नज़र आयी थी हसरत उसकी, कबसे आँखों में लिये बैठा हूँ सूरत उसकी”। जब भी उधास इसका लाइव प्रदर्शन करते हैं तो माहौल में उदासी छा जाती है।
निकलो ना बेनकाब
मुमताज रशीद द्वारा भी लिखा गया, इसका उपयोग 1985 के एल्बम नायाब वॉल्यूम 1 में किया गया था। मुख्य पंक्तियाँ हैं, “निकलो ना बेनकाब ज़माना ख़राब है, और उसपे ये शबाब ज़माना ख़राब है”। लॉकडाउन के बाद, लोगों ने लोगों को मास्क पहनने के लिए प्रोत्साहित करने वाले संदेश के रूप में पहली पंक्ति का उपयोग करते हुए वीडियो प्रसारित किए।
एक तरफ़ उसका घर
उधास के कुछ गाने नशे की थीम के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिससे वे उन लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो जाते हैं जो एक या दो ड्रिंक पसंद करते हैं। जफर गोरखपुरी की यह कहानी एक व्यक्ति की दुविधा की बात करती है। मुख्य पंक्तियाँ हैं, “ऐ हमें जिंदगी कुछ तो दे मशवरा, एक तरफ उसका घर, एक तरफ मालिका”।
और आहिस्ता जरूरी बातें
जफर गोरखपुरी की मुक्त कविता को उधास ने बांसुरी, महिला बैक-अप स्वर और उचित समय पर बजने वाले कीबोर्ड के साथ खूबसूरती से व्यक्त किया है। समीरा रेड्डी पर फिल्माए गए इस गाने का वीडियो अपने समय में काफी सफल रहा था।
जियें तो जियें कैसे
1991 की फ़िल्म साजन में इस गाने के चार संस्करण हैं, जिसमें उधास स्वयं दिखाई देते हैं और एक गाते हैं। संगीत नदीम-श्रवण का है, जिसमें समीर लिखते हैं, “जिये तो जियें कैसे, बिन आपके, लगता नहीं दिल कहीं, बिन आपके”। सलमान खान और माधुरी दीक्षित भी स्क्रीन पर नजर आए.
चिट्ठी आई है
उधास के हर शो में ज़रूर शामिल होने वाले इस गाने ने फिल्म नाम की रिलीज़ के 36 साल बाद भी अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी है। संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का है, जिसमें आनंद बख्शी ने घर से दूर रहने वाले व्यक्ति की भावनाओं के बारे में लिखा है। उधास को एक संगीत समारोह में दर्शकों के बीच संजय दत्त और अमृता सिंह के साथ गाना गाते हुए दिखाया गया है।
हालाँकि यह चयन 1980 और 1990 के दशक से जुड़ा है, लेकिन पिछले दो दशकों में उन्होंने कुछ शानदार संगीत जारी किए हैं। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की रचनाओं का संग्रह दस्तखत और कवि गुलज़ार के साथ उनका एल्बम नायाब लम्हे विशेष उल्लेख के योग्य हैं। उधास अभी भी खचाखच भरे हॉलों को आकर्षित करते हैं, और उनके शो पुरानी यादों से भरे होते हैं।
फरीदाबाद से आई दुखद खबर में, युवा अभिनेत्री और ‘दंगल’ फिल्म की स्टार सुहानी भटनागर का महज 19 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। सुहानी के पिता पुनीत भटनागर ने मीडिया को बताया कि उनकी बेटी डर्मेटोमायोसिटिस नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थी।
शरीर पर लाल दाग
दो महीने पहले, उनके हाथ पर लाल दाग दिखाई दिया, जिसे पहले एलर्जी समझा गया था। इसके बाद, फरीदाबाद के कई प्रमुख अस्पतालों में उनका इलाज कराया गया, लेकिन बीमारी का सही निदान नहीं हो पाया।
फिल्मी करियर की शुरुवात
सुहानी ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत ‘दंगल’ फिल्म से की थी और इसी के साथ उन्हें ‘दंगल गर्ल’ के नाम से भी जाना जाने लगा। उनका निधन शनिवार की सुबह दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ। सुहानी का अंतिम संस्कार अजरौंदा श्मशान घाट में किया गया, जहाँ परिवार सहित पूरे फरीदाबाद ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी।सुहानी के माता-पिता ने अपनी बेटी के जाने के गहरे दुःख के बावजूद, गर्व की भावना भी व्यक्त की कि उनकी बेटी ने छोटी सी उम्र में फरीदाबाद का नाम रोशन किया। सुहानी की मां पूजा भटनागर ने बताया कि उनकी बेटी को बचपन से ही मॉडलिंग और एक्टिंग का शौक था।